Wednesday, 5 October 2011

Tanhai

खामोश है ये दिन
खामोश है ये रात
कैसी है ये तन्हाई 
कैसी है ये बात


रो रहें हैं हम
तड़प रहें हैं हम
खुदा के आगे झुलस रहें हैं हम
ना देना ऐसी तन्हाई किसीको
हर दुआ में ये मांग रहें हैं हैं हम


बड़ते हैं आगे किसी का हाथ थामने को, पर वो हाथ छुट जाता है
मनाये क्या उस रूठे हुए को वो हर बात पे रूठ जाता है


दोपल साथ चलके हमारे, फिर हमें तनहा छोड़ गए
हमने सबसे मुह मोड़ा तम्हारी खातिर और तुम हमीं से मुह मोड़ गए 



दर्द देना था तो जिस्म का देते जिसके ठीक होने की उम्मीद भी होती
रोते बी उस ग़म में पर फिर भी कोई तकलीफ  ना होती


तुम क्या जानोगे तन्हाई का मतलब 
साया भी साथ छोड़ देता है
सब कुछ होता है आसपास 
पर रूह तक को निचोड़ देता है!

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