Wednesday, 5 October 2011

Jindagi


उलझे हुए दागो सी उलझी है जिंदगी
किताबो के कुछ पन्नो सी बिखरी है जिंदगी
दर्द को छुपाके मुस्कुराती है जिंदगी
चाहत को दिल में दबाती है जिंदगी
मोड़ जिंदगी के कैसे हैं अजनबी 
हर मोड़ कीअब  एक  मंजिल  है  नई 
उठ्ती हैं  पलके   आसमान  को  देखने  के  लिए  
पर  धुल  से  इन  पलकों  को   जुकiती  है  जिंदगी
छोटे  से  दिल  में  कई  अरमान  जग  जाते  हैं
उन  अरमानो  को  कभी  सहलाती  है  जिंदगी
उस  छोटे  दिल  में  ख्वाइशो    के  समुन्दर  बस  जाते है
उस  समुन्दर  में  सह्लiब  लाती  है  जिंदगी
आँखों  में  आंसूं  हों  या  होठों 
पे  हसी 
हर  मोड़  पर  चलना सिखाती  है  जिंदगी 
रिश्तों को तोडती है  जिंदगी
फिर उन्ही रिश्तों को जोडती है जिंदगी
अप्नो से कभी रूठतीहै जिंदगी
उन्ही अपनों को कभी मनाती है जिंदगी
कई बार हमको गिरiती है जिंदगी
फिर अपने ही हाथों से उठाती है जिंदगी
कभी तो रात भर सिसक सिसक के रुलाती है जिंदगी
फिर दूसरी सुबह खुद ही गले लगाती है जिंदगी

जिंदगी  की  भी  क्या  अजीब  दास्ताँ  हैं मरते  हुए  को  जीना  सिखाती  है  जिंदगी !

No comments:

Post a Comment